Saturday, March 13, 2021

आत्मनिर्भर भारत

जब से मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कही है, मैं बहुत खुश हूं और लगता है कि जीवन में अब कोई समस्या ही नहीं रही। लेकिन एक दिन में मिली एक ऐसी लड़की से... 


एक लड़की जो की तैयारी कर रही है प्रतियोगी परीक्षाओं की। उससे मैंने कहा कि तुम अपना बिजनेस क्यों नहीं कर लेती। अपना काम रहेगा दूसरों का सहारा नहीं रहेगा बल्कि तुम खुद किसी का सहारा बन सकोगी और दूसरों को रोजगार दे सकोगी। तपाक से बोली "अरे वाह क्या बात बताई है तूने ये तो मुझे पता ही नहीं था। थैंक यू यार थैंक यू"। पहले तो मैं खुश हुई फिर अचानक से उसके बोलने के तरीके से मुझे लगा कि शायद वह मुझे ताना मार रही है। उसने आगे कहा कि आत्मनिर्भर भारत, सशक्तिकरण, सशक्त महिला फलाना ढिमाका की बातें करना बहुत आसान है। खुद एक लड़की की नजर से देखो सारी चीजें समझ में आ जाएंगी। मैं अपना खुद का बिजनेस कर लूं? ठीक है कर लूंगी,  दो चार साल में हूं उसको बड़ा कर लूं , ठीक है वह भी कर लूंगी,  बिजनेस अच्छा खासा चलने लगा, कमाई होने लगी, घर परिवार की परिस्थितियां अच्छी हो गईं,  कई सारे लोगों को रोजगार दे दिया मैंने और फिर... फिर क्या? चूंकि मैं अविवाहित हूं तो मुझे शादी भी करनी है, चूंकि मैं लड़की हूं तो मुझे दूसरे के घर जाना है, चूंकि मैं भारतीय महिला हूं इसलिए मुझे अपने ससुराल रहना है।  अब तू बता मैं क्या करूंगी? खून पसीना एक करके अपना बनाया हुआ बिजनेस बंद कर दूं? या शादी ना करूं? या ससुराल छोड़ दूं? या बेरोजगार रहूं? क्या करूं मैं? बता जवाब दे। 

मैंने कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन मेरी बात बीच में काटते हुए वह बोली-  हां मुझे पता है तू क्या बोलने वाली है,  लेकिन दुनिया की हर लड़की केवल सिलाई कढ़ाई या ब्यूटी पार्लर नहीं करती। सबके शौक सबके हुनर एक जैसे नहीं होते। लड़की का मतलब ये ज़रूरी नहीं कि मैं डांस क्लास शुरू करूं या फिर ब्यूटी पार्लर खोलूं या सिलाई करूं या छोटे बच्चों को ट्यूशन दूं , अपनी कोचिंग खोलूं। 

उस लड़की का क्या जो इन सब से अलग करना चाहती है। बहुत सारे सरकारी विज्ञापन देखे होंगे तूने जिसमें लिखा होगा कि महिला सशक्त हो गई अपना व्यापार कर लिया, खुद का उद्यम कर लिया। तूने ऐसी कोई महिला देखी है जिसने खुद की बड़ी सी कंपनी खोली हो और उसका बिजनेस चलने के बाद उसने शादी की और उसकी फैमिली उसको सपोर्ट कर रही हो।  शायद नहीं, अगर देखी भी होगी तो इनका प्रतिशत कितना है यह तू भी जानती है। बचपन से घर वालों ने इतना पढ़ाया लिखाया है इसलिए नहीं कि मैं सिलाई कढ़ाई करूं ब्यूटी पार्लर खोलूं और छोले समोसे की दुकान खोल लूं। अगर यही करना होता तो उसमें पढ़ने की कोई जरूरत नहीं थी। मेरा यहां कहने का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि यह काम करने वाले लोग बुरे होते हैं या छोटे होते हैं। मेरा बस कहने का मतलब इतना है कि क्वालिफिकेशन के हिसाब से काम होने चाहिए और सबकी अपनी अपनी पसंद होती है सबकी प्राथमिकताएं होती हैं और मेरी प्राथमिकता ऐसी नहीं है। क्या मेरे लिए है कोई जवाब सरकार के पास।

तुझे समझ में आया कि मैं नौकरी की तैयारी क्यों कर रही हूं? क्यों नहीं मैं अपना खुद का उद्यम कर लेती, क्यों नहीं मैं स्वरोजगार कर लेती? क्योंकि यह भारत है अमेरिका नहीं, हमें अपनी फैमिली को लेकर चलना पड़ता है हमें बचपन से यही संस्कार दिया गया है कि हर काम में हमें परिवार के सुझाव, उनकी सलाह, उनके सपोर्ट की जरूरत होती है। चाहे लड़की हो या लड़का अपनी फैमिली को नहीं त्याग सकते। लड़कों के साथ अच्छी बात यह होती है कि उन्हें अपनी फैमिली चेंज नहीं करनी पड़ती लेकिन यह सुविधा लड़कियों को नहीं मिलती। और बिजनेस में होमटाउन ट्रांसफर की सुविधा नहीं होती। 

अब ये मत बोलना की घर पर ही एक कमरे में एक कुछ काम शुरू कर दे क्योंकि तू भी जानती है की गांव में अपना छोटा छोटा बिजनेस चलाने वाले कितना कमाते हैं और कितने ग्राहक आते हैं उनके यहां रोज। तो मुझे शहर जाकर कोई काम शुरू करना होगा। चूंकि बिजनेस होगा तो उसका विज्ञापन भी करना होगा और अपना बजट ज्यादा नहीं है तो ज्यादा कर्मचारी भी नहीं रख सकती इसलिए ज्यादातर काम मुझे खुद करने होंगे। घर से 35 किलोमीटर दूर शहर में अपना बिजनेस खोला है लेकिन रोज घर पर वापस भी आना है। बिजनेस भी संभालना है और उसको इस प्रतियोगी बाजार के लिए तैयार भी करना है। अब तू बता क्या सरकार मुझे इन सामाजिक बंधनों से मुक्त कर पाएगी कि मैं रात के 12:00 बजे भी काम खत्म करके घर आऊं तो मुझे कोई गलत तरीके से ना देेखे, कोई मेरे कैरेक्टर पर शक ना करे, कोई मेरी फैमिली को कुछ ना बोले? मुझे पता है कि इस पर बहुत सारे लोग ऐसा बोलेंगे कि "शहर में ही रह लो" या फिर "गांव से हो तो इतना बड़ा काम क्यों सोच रही हो"। आपकी बात बिल्कुल सही है या तो मैं अपना गांव छोड़ दूं, घर छोड़ दूं , परिवार छोड़ दूं , या फिर मैं इसलिए कुछ ना करूं तो कि मैं गांव की हूं।  हमारी सोसाइटी में हमें यही सिखाया जाता है पढ़ो पढ़ो और पढ़ो। सबसे ज्यादा नंबर लाओ, अच्छी सी नौकरी पाओ। पढ़ना मेरा शौक बन गया लेकिन मैं क्या करूं ऐसा कोई बिजनेस है जहां पढ़ाई से तरक्की मिले? हमें तो नौकरी के लिए तैयार किया गया है स्कूल में, कॉलेज में हर जगह। बिजनेस के तौर तरीके आपने कब पढ़ाये अपने एजुकेशन सिस्टम में। मेरे दिमाग में तो सक्सेस का मतलब जो बचपन से डाला गया वह यही है कि एक बड़ी सी कंपनी, जिसमें अच्छी सी पोस्ट वाली जॉब, बहुत सारेे पैसे, हर महीने सैलरी आ जाए, 9:00 से 5:00 की जॉब हो, शाम को मैं अपने घर होऊं, फैमिली के साथ रहूं, हर वीकेंड पर घूमने जाऊं। लेकिन आज आप कह रहे हो कि मैं अपना खुद का बिजनेस चला लूं? नहीं आता मुझे बिजनेस चलाना, मेरे घर खानदान में 10 पीढ़ियों से किसी ने बिजनेस नहीं किया है। और अब तो मैं इस लायक भी नहीं कि बिजनेस करने के लिए कोई कोर्स कर लूं। इसके लिए है कोई जवाब आपके पास? सिर्फ एक जवाब ही होगा की छोटी सी दुकान खोल लो और 10 साल उसी में घिसते रहो, किस्मत अच्छी हुई तो बिजनेस चल पड़ेगा क्योंकि बिजनेस की स्ट्रैटेजी और तौर-तरीके तो मुझे आते नहीं, तो किस्मत पर ही भरोसा करूं ना? आप तो अपनी स्वरोजगार योजना में केवल सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर, कंप्यूटर की दुकान जहां ऑनलाइन फॉर्म भरे जाते हैं (जहां कोई जाता नहीं है अब), मोटर साइकिल, मोबाइल और कंप्यूटर रिपेयरिंग आदि की ट्रेनिंग देते हो। ट्रेनिंग लेकर बच्चे दुकान तो खोल लेंगे लेकिन उसको मार्केट में कंपीट करने के लायक कैसे बनाएंगे यह बताया आपने? क्योंकि हमने तो समाज में कॉन्टैक्ट बनाए ही नहीं न, जो हमारे बिजनेस का प्रचार प्रसार कर दे लोगों से बातचीत करके। हम तो एक कमरे में बंद रह कर केवल तैयारी करते रहे कि 1 दिन ढेर सारी वैकेंसी आएगी और हमारी भी सरकारी नौकरी लग जाएगी। 


वह बोलती गई और बोलती गई लगातार बिना रुके, और हमेशा बकबक करने वाली मेरी जुबान चुप थी।क्योंकि नहीं था मेरे पास कोई जवाब उसकी बातों का।  आपके पास है? हो तो बताइएगा जरूर।

Sunday, October 6, 2019

छिपी बेरोजगारी

आकर्ष, आठवीं कक्षा में पढ़ने वाला एक बच्चा। अपनी माँ के आंसू पोछते हुए कहता है, "तुम रो मत माँ, मैं भी समझता हूँ कि पापा किस स्थिति में मेरी फीस भरते हैं। मैं कोई बच्चा थोड़ी न हूँ! बस मुझे इंटर पास कर लेने दो, फिर अच्छी सी जॉब मिल जाएगी क्योंकि मैं तो हमेशा फर्स्ट आता हूँ क्लास में। है न माँ??"
भावना, इसने इसी साल बी.टेक में एडमिशन लिया है। भावना के पिताजी उसको "इंटेलिजेंट गर्ल" कहकर पुकारते हैं। आंखों में ढेरों सपने लिए हुए भावना कहती है,"पापा मुझे आशिर्वाद दो ताकि बी.टेक कर के एक अच्छी कम्पनी में इंजीनियर बनूं" पिताजी भावना के सिर पर हाथ फेरते हुए कहते हैं, "फिर मैं भी सीना चौड़ा करके बोलूंगा कि इंजीनियर का बाप हूँ"।
अंकिता, एक भोली भाली लड़की। अंकिता ने अभी तो पोस्ट ग्रैजुएशन कम्प्लीट किया है। लेकिन ये रिश्तेदार भी न, शादी की रट लगा रखे हैं। लकिन अंकिता के मन में तो पीएचडी करने के सपने सज रहे हैं, क्योंकि ये चाहती है कि शादी से पहले अपने पास एक अच्छी जॉब हो। अंकिता चाहती है कि शादी के बाद वह केवल किसी की बहू ही नहीं बल्कि प्रोफेसर अंकिता बन कर जाये। अंकिता जा रही है यूनिवर्सिटी से अपनी मार्कशीट लेने, काफी खुश है वह। रास्ते में वह मिलती है पूरब से।
पूरब, एक टैक्सी ड्राइवर। अंकिता उसी की टैक्सी में बैठकर जा रही है। अंकिता ने पूरब से कहा, "भैया यूनिवर्सिटी जाना है मुझे"। पूरब ने उत्सुकतावश पूछा, "मैडम आप क्या करती हैं वहाँ?" अंकिता ने चहक कर जवाब दिया, "भैया मेरा पीजी कम्प्लीट हो गया है, अब पीएचडी करुंगी"। "हम्म", पूरब ने जवाब दिया। अंकिता ने पूछा, "भैया, आपके बच्चे भी पढ़ाई करते होंगे न"। पूरब ने जवाब दिया," हाँ मैडम, एक बेटा है, आठवीं में पढ़ता है"। अंकिता बोली," अरे वाह! फिर तो समझदार होगा आपका बेटा, क्या नाम है उसका?" पूरब ने गहरी सांस भरी और बोला,"हाँ, आकर्ष तेरह साल का हो गया है। एक्चुअली, मैं एलएलबी फाइनल इयर में था तभी शादी हो गयी थी और..."। उसकी बातें ख़त्म होने से पहले ही अंकिता ने चौंक कर पूछा, "एलएलबी?? आपने एलएलबी करी है??" पूरब ने बहुत ही शर्मिंदगी से हाँ में जवाब दिया। "तो फिर आपने वक़ालत क्यों नहीं की? उसमें आपका इंट्रेस्ट नहीं था क्या?", अंकिता सवाल पर सवाल किये जा रही थी। पूरब ने ठिठक कर जवाब दिया, "मैडम इंट्रेस्ट तो बहुत था लेकिन इंट्रेस्ट मुझे और मेरे परिवार को खाना नहीं दे सकता न"। अंकिता ने अगला सवाल दागा, "तो क्या आपने किसी छोटे कॉलेज से एलएलबी कर ली थी? जहां से डिग्री तो मिल गयी लेकिन नॉलेज नहीं"। "आपकी ही यूनिवर्सिटी से एलएलबी हूँ मैडम", पूरब ने मुस्कुराते हुए कहा। अंकिता बहुत हैरान थी क्योंकि वह जानना चाहती थी कि पूरब क्वालिफाइड होकर भी टैक्सी क्यूँ चलाता है? अंकिता के बार बार पूछने पर पूरब ने बताया," मैडम मैने तीन साल वक़ालत की लेकिन अपना जेब खर्च भी बहुत मुश्किल से निकाल पाता था। फिर मैने टैक्सी चलाना शुरू किया, इसमें बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन उससे काफी ज्यादा कमाता हूँ। इतना तो कमा ही लेता हूँ कि शहर के एक अच्छे स्कूल में आकर्ष को पढ़ा रहा हूँ। डेली के खर्चे में काफी एडजस्ट करना पड़ता है, बट इट्स ओके"।
इतना कहकर पूरब ने टैक्सी रोक दी। अंकिता ने चौंक कर उसकी तरफ देखा, तो उसने मुस्कुराकर कहा, "मैडम, यूनिवर्सिटी आ गयी"। पूरब की मुस्कान में छिपी मजबूरी को अंकिता साफ साफ देख पा रही थी लेकिन उसके वश में कुछ नहीं था, वह टैक्सी से उतर कर यूनिवर्सिटी चली गयी लेकिन अब उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।

कुछ साल बाद...

इंटरमीडिएट के बाद अपने परिवार का दुख दूर करने के सपने देखने वाला आकर्ष अब थोड़ा और बड़ा हो गया है और आईआईटी की तैयारी कर रहा है। ईश्वर करें उसके जीवन में सबकुछ अच्छा हो। अंकिता ने पीएचडी की या नहीं, ये तो नहीं मालूम लेकिन बी.टेक करने वाली भावना अब बैंकिंग की तैयारी कर रही है। उसके परिवार और दोस्तों को विश्वास है कि भावना बैंकिंग का एक्जाम जरूर क्लीयर कर लेगी। ऐसा संभव भी है क्योंकि भावना तो है ही इंटेलिजेंट गर्ल। बैंक में नौकरी लग जाने के बाद उसे अच्छी सैलरी मिलने लगेगी लेकिन एक्चुअल में तो उसकी बेरोजगारी जाएगी ही नहीं। जी हाँ! भावना बेरोजगारी की शिकार हमेशा रहेगी, छिपी बेरोजगारी। बिल्कुल पूरब की तरह। ये हमारे देश के ऐसे बेरोजगार हैं जिन्हें कोई बेरोजगार ही नहीं मानता।
क्या भावना और पूरब के जीवन की तरह आपके किसी जानने वाले की कहानी है? यदि हाँ तो हमें कमेंट कर के बताएँ।


Thursday, August 8, 2019

कुछ लोग अच्छे भी होते हैं

कभी कभी मिल जाते हैं कुछ अच्छे लोग
बस या ट्रेन में लम्बा सफर करते हुए या अॉटो में या
या बन जाते हैं पैदल चलने वाले हमराही, अगर हम दोनों में से कोई नया हो अमूक शहर में
जाने अनजाने शेयर हो जाती हैं कुछ ऐसी भी बातें जो अमूमन किसी से न बताने का निश्चय किया था
होती हैं पढ़ाई लिखाई करियर फ्यूचर की ढेरों बातें और नहीं पूछते कोई पर्सनल सवाल
ना पापा की सैलरी और ना ही ब्वॉयफ्रेंड या शादी के बारे में कुछ
ऐसे भी होते हैं कुछ लोग जो नहीं मांगते मोबाइल नंबर और ना ही कनेक्ट होना चाहते सोशल मीडिया पर
उन्हें नहीं मतलब होता किसी चीज से, शेयर होते हैं जीवन के कुछ अच्छे बुरे अनुभव और चले जाते हैं अपनी मंजिल को
फिर कभी नहीं मिलते वो दोबारा और ना ही कोई कॉन्टेक्ट होता है जीवन भर
लेकिन छोड़ जाते हैं दिलो-दिमाग पर अपनी छाप, जो कभी नहीं मिटती
वक़्त बीतने के साथ भूल जाता है चेहरा लेकिन नहीं भूलता वह व्यक्तित्व जिसे याद करते हुए लगता है कि काश!
पचास फीसदी भी लोगों की हो जाती ऐसी मानसिकता तो किसी बेटी को डर नहीं लगता हमारे समाज में, न हिचकती कोई बेटी किसी अनजान से बात करने में।

Sunday, June 30, 2019

कैसे भूल जाऊँ आपको

कैसे भूल जाऊँ आपको आपसे ही मेरा अस्तित्व है।
मुझे अच्छा लगता है आपके बारे में सोचना, क्यूँ करूं मैं भूलने की कोशिश।
आप थीं तो बात कुछ और थी, अब तो कोई बात ही नहीं।
घर जाने का शौक था और याद भी आती थी जब होता था कोई इंतजार करने वाला।
अब तो बस चली जाती हूँ जब कोई काम हो या कोई बड़ा त्योहार पड़े।
सोचती हूँ कि काश अब भी कोई होता जो दरवाजे पर खड़े खड़े मेरी राह देख रहा होता।
काश अब भी कोई होता जो कहता कि आओ बैठो मेरे पास, मत करो कोई काम।
एसी में बैठने पर भी वो ठंडक नहीं मिलती जो आप अपने आंचल की हवा से देती थीं।
यह ध्यान रखते हुए कि मेरे शरीर का बोझ आप पर न पड़े, आपकी गोद में सिर रखकर लेटना बहुत आरामदायक होता था माँ।
आपकी भी तो बहुत उम्मीदें हैं न मुझसे, उन उम्मीदों पर खरी उतरने की पूरी कोशिश कर रही हूँ।
शायद आपका आशिर्वाद है जो मुझे ताकत देता है कुछ करने की, आगे बढ़ने की।
मुझे हर उस पल में आपकी कमी महसूस होती है जब मैं खुश होती हूँ, अपनी समस्याओं को शेयर करना तो मेरी आदत में कभी रहा नहीं।
ऐसा लगता था कि आपके बाद मैं भी खत्म हो जाऊंगी लेकिन फिर भी जी रही हूँ, वो सारे काम कर रही हूँ जो करती थी।
घर जाने पर हर कोई मिलता है लेकिन खुशियां आसपास भी नहीं दिखतीं।
आज एक साल पूरे हो गए लेकिन फिर भी नजरें हर तरफ आपको ही क्यूँ ढूंढती हैं माँ,
आप मेरी ही नहीं बल्कि पूरे परिवार की माँ थीं।
आपने मुझे बहुत मजबूत बनाया है लेकिन मैं बहुत मुश्किल से ही अपने आंसू रोक पाती हूँ जब याद आते हैं आपके साथ बिताए हुए वो यादगार पल।
सालों साथ रहकर एक झटके में बिछड़ जाने और सबकुछ खत्म हो जाने का दर्द शायद आप भी महसूस कर रही होंगी।
एक वो समय था जब आप मुझे तैयार करती, बालों में कंघी करती और अपनी उंगली पकड़ाकर घूमाने ले जाया करती थीं।
इसी जीवन में एक वो समय भी आया जब मैं आपके बालों में कंघी कर, चप्पल पहनाकर और हांथ पकड़ कर घूमाने ले जाती थी।
हम दोनों ने एक दूसरे को पाला है। मैंने तो आपका साथ निभाया फिर आप क्यूँ नहीं?
मुझे पसन्द थीं परिवार और समाज की वो शिकायतें, जो आप मुझसे किया करती थी।
मुझे आपकी याद नहीं आती, हाँ नहीं आती मुझे आपकी याद क्योंकि मैंने खुद को आपसे इतना दूर कभी महसूस ही नहीं किया।
याद तो तब आती जब भूली होती, जो कि इस जीवन में तो संभव नहीं।
लेकिन आपकी कमी को इस दुनिया का कोई अन्य रिश्ता पूरा नहीं कर सकता।
काश ये सारी बातें मैं आपके सामने बैठकर कह पाती!
और काश एक बार आप मेरे बालों को सहलाते हुए माथे पर फिर एक किस कर पाती!
लिखना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन न तो अब मेरे अंदर कुछ लिख पाने की शक्ति बची है और न ही आपके लिए कोई शब्द।
आजी साब!! काश थोड़ा और समय आपके साथ बिता पाती!😢

Tuesday, April 9, 2019

विजयगढ़ किला

देवकी नंदन खत्री का नाम तो आपने सुना होगा। लाहौर में पैदा हुए खत्री काशी आकर बस गये थे और वहां के राजा के बहुत करीब हो गए थे फलस्वरूप राजा से उन्होंने नौगढ़ के जंगलों का ठेका ले लिया था। और यहां से शुरू हुई उनके जीवन की असली कहानी।
देवकीनंदन खत्री का ज्यादा समय जंगल में ही बीतता था तो उन्होंने जंगल और खंडहरों से प्रेरणा लेकर एक उपन्यास ही लिख डाला और नाम रखा ""चन्द्रकांता""।
वर्ष 1888 में लिखा यह उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुआ और इस पर एक टीवी सीरियल भी बना। टीवी सीरियल काफी रोचक था और बहुत सारे लोग इसे पसंद करते थे।
लेकिन क्या उस किले को आपने देखा है, जहां की राजकुमारी थीं चन्द्रकांता? अगर नहीं, तो जाइए कभी यूपी के सोनभद्र और देख लीजिए यह तिलिस्मी किला। कहानी सबको पसन्द आयी लेकिन किले पर किसी का ध्यान नहीं गया, सरकारों का भी नहीं। यदि ऐसे ही चलता रहा तो कुछ दिनों बाद यह किला हमारे लिए सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएगा।

कुछ बातें जो इस किले को खास बनाती हैं

विजयगढ़ किले से चुनारगढ़ और नौगढ़ जाने के लिए गुफा द्वारा सीधा रास्ता है लेकिन यह रास्ता सिर्फ तिलिस्म से ही खुलता है। इन्हीं गुफाओं में खजाने छुपे होने की भी आशंका जताई जाती है। यहां पर कुल छोटे बड़े सात तालाब हैं तथा चार तालाब ऐसे हैं जिनका पानी कभी नहीं सूखता। ज्यादातर तालाब अपना अस्तित्व खो चुके हैं। सावन के महीने में कांवरिए इन तालाबों से जल भरकर ले जाते हैं। किले के दो दरवाजे हैं जिनमें से पिछले दरवाजे का रास्ता सामने वाले दरवाजे की तुलना में कम है लेकिन उसकी बदतर स्थिति के कारण किसी को पिछले दरवाजे से जाने की अनुमति नहीं है। प्रशासन ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। किले के अंदर बने कमरे भी अब खंडहर हो गये हैं। बारिश में लोगों के रहने तक की जगह नहीं है, मिरानशाह की मजार और हनुमान मन्दिर के बने छप्पर में जाकर लोग बारिश से खुद को बचाते हैं।।

देखिए ये डिजिटल स्टोरी -


Monday, April 1, 2019

तुम अपना देख लो

वो अच्छी है, वो समझदार है
तुमसे ज्यादा
वो खेतों में काम करती है इसलिए वो बेरोजगार नहीं
उसे नहीं मांगने पड़ते हैं पति से पैसे अपनी जरूरतों के लिए
वो भले ही अनपढ़ या कम पढ़ी लिखी हो लेकिन किसी पर आश्रित नहीं तुम्हारी तरह।
वो नहीं डरती किसी से, अपने शराबी पति से भी नहीं
वो पतिव्रता और पति परमेश्वर का राग नहीं अलापती इसलिए खुद पर हांथ उठाने वाले पति को मार भी सकती है फेंककर कंडा, चप्पल, बेलन या किसी चीज से, जो उसके हांथ में हो
मतलब वो सेल्फ डिफेंस भी जानती है
तुम अपना देख लो
संस्कारी परिवार की बहू, संस्कारी पत्नी, संस्कारी परिवार की बेटी साबित करना चाहती हो न खुद को तुम?
 केवल सहते रहना ही तुम्हारे संस्कार का नियम है
क्योंकि संस्कार की दुहाई देने के चक्कर में "विरोध" नामक शब्द तो कहीं पीछे छूट गया
तुम्हें नहीं हक है पति की गलत बातों पर पलटकर जवाब देने का, क्योंकि तुम संस्कारी जो हो
तुम जॉब नहीं कर सकती क्योंकि अच्छे घर की बेटी/बहू जाॅब नहीं करती, फैमिली की इतनी रिस्पेक्ट है सोसाइटी में। और तुमको कमी ही किस चीज की है जो तुम जाॅब करोगी
दरअसल बात कमी की नहीं, बात तो यह है कि अगर तुम जाॅब करने लग जाओगी तो घर के पुरुष तुमको कंट्रोल कैसे कर पाएंगे, तुम्हारे पास अपने पैसे होंगे तो तुमको डराएंगे धमकाएंगे किस हथियार से।
तुम पर शासन कर के ही तो अपना पौरुष साबित करते हैं वो
इतराती रहो तुम खुद को जननी पुकार के, बच्चे पालो और मिटा दो अपनी खुशियां उनके भले के लिए।
हां क्यों नहीं! बच्चे तुम्हारे अकेले के जो हैं, तो बलिदान भी तो तुमको अकेले ही करना होगा न?
तुम जी रही हो एक बेटी,बहन, बहू, पत्नी, मां.. का जीवन, भूल गयी हो तुम खुद को
तुम्हारा भला कोई कैसे कर सकता है जब तुम खुद भूल गयी हो कि तुम सबसे पहले एक स्त्री हो।

Friday, March 8, 2019

लोगों के सवाल और मैं

तुम्हारा नाम क्या है? - नलिनी
अरे पूरा नाम बताओ - कुमारी नलिनी
मेरा मतलब कि तुम्हारा टाइटल क्या है - कोई टाइटल नहीं है
अरे ऐसा कैसे हो सकता है,,,
अच्छा तुम्हारा घर कहां है? - फलाने गांव/शहर
अरे तुम वहां की हो? क्या नाम है पापा का? - - क्यूँ?
बस ऐसे ही पूछ रहे हैं, शायद जानते हों उनको - अगर जानते होंगे तो क्या करेंगे और न जानते होंगे तो क्या करेंगे??
अरे नहीं नहीं आप गलत समझ रही हैं हेहे, मैं तो बस.. बस ऐसे ही पूछा



कुछ ऐसे ही सवाल मुझसे अक्सर पूछे जाते हैं, अपने शहर से आने वाली ट्रेन में, सिटी बस में या गांव जाने वाले अॉटो रिक्शा में
जॉब इन्टरव्यू हो या अपने टीचर हर किसी की जिज्ञासा होती है कि "पापा क्या करते हैं",,,, आखिर ये जानना क्या चाहते हैं? ये कि मेरे पास कितने पैसे हैं? मैं गरीब, अमीर या मिडिल क्लास हूँ? जान के करेंगे क्या?

लम्बी दूरी के सफर में सहयात्री पूछते हैं कि
 """अकेले जा रही हो तुम्हारा कोई भाई नहीं है क्या?
       - है भाई
अच्छा छोटा है? - नहीं बड़ा है
बाहर रहता है क्या? - नहीं घर पे ही रहता है
फिर रात का सफर और अकेले क्यूँ? - क्योंकि मुझे अच्छा लगता है""" 
अब उसकी नजरें अजीब तरीके से मुझे देखती और जज करती हैं,
मुझे नहीं पता कि मुझे जज करने का हक उसे किसने दिया? सरकार ने, संविधान ने या मेरे पेरेंट्स ने?

शाम के सात या आठ बजे अगर पैदल चलकर घर आऊं तो मोहल्ले के अंकल और आंटी लोग फिक्रमंद हो जाते हैं, अरे बिटिया अभी को अकेले पैदल क्यों जा रही हो? - क्योंकि मुझे घर जाना है
आधे घंटे पहले भैया भी तो गये हैं, बोल दी होती वेट करने को और साथ में चली जाती - भैया क्यों वेट करेंगे, मैं खुद चली जाऊंगी
फिर मन में बुदबुदाते हुए कि "पता नहीं कैसा भाई है इसका, बहन की थोड़ी भी फिक्र नहीं है"
मैं और मेरी फैमिली एक दूसरे से प्यार करते हैं ये मुझे दूसरों को दिखाने की क्या जरूरत है? मेरी सुरक्षा की पहली जिम्मेदारी मेरी है, फैमिली की बाद में
लड़की को सुरक्षित माहौल देने में सहयोग की जिम्मेदारी पूरे समाज की है, हमारी है आपकी है।
इस मृत्युलोक में हर व्यक्ति के पास कुछ न कुछ समस्याएं हैं, कोई भी पूर्णतः सुखी नहीं है परन्तु फिर भी लोग अपने दुख का निदान न करके दूसरे के जीवन में टांग अड़ाते हैं
रात में अकेले चलना या ट्रेन में अकेले यात्रा करना कैरेक्टर लेस होने का प्रमाण नहीं होता, आपको कोई हक नहीं है किसी को जज करने का।

Tuesday, February 19, 2019

सहयोग के बिना संभव नहीं तरक्की


लड़कियों/महिलाओं को हेल्प लेने की आदत होती है और वो चाहती हैं कि उन्हें सहायता व सुविधाएं इसलिए दी जाएं क्योंकि वे लड़की हैं। लड़की लड़का एक समान की दुहाई देने वाली इन लड़कियों की क्षमता कहां चली जाती है बस में खड़े होकर सफर करते समय। कोई पुरुष किसी लड़की को अपनी सीट क्यूँ दे? उसे भी तो बैठना है और उसने भी तो पैसे दिये हैं टिकट के।
 किसी पर्टिकुलर जेंडर के आधार पर हेल्प मांगना कभी भी ताकतवर होने की निशानी नहीं हो सकती। वहीं इस बात का एक दूसरा पहलू यह भी है कि किसी की सच्चाई को जाने बिना उसे जज करना भी कोई समझदारी नहीं है।
स्त्री और पुरुष में शारीरिक रूप से काफी भिन्नताएं होती हैं। प्रेग्नेंसी, पीरियड्स आदि कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे मानव जाति का अस्तित्व है।  चूँकि स्त्री जननी है इसलिए वह इन कष्टों को सहते हुए मनुष्य को धरती पर लाती है। इसके बदले में हमारा क्या धर्म है? हमें क्या करना चाहिए। वो सारे कष्टों को सहते हुए अपनी सहनशीलता का परिचय दे रहीं हैं तो क्या थोड़ी सी सहायता करना भी हमारा फर्ज नहीं? क्या हम ये नहीं कर सकते कि पत्नी के पीरियड्स के समय कुछ दिन हम खाना बना दें? उसे आराम मिलेगा और खुशी भी।
क्या हमारे यहां ऐसा माहौल नहीं हो सकता कि कोई लड़की ड्राइवर से खुलकर बोल सके कि थोड़ी देर बस रोक दीजिए मुझे पैड बदलना है? लम्बी दूरी के सफर में बसें केवल ढाबे पर या उस स्थान पर रुकती हैं जहां ज्यादा सवारी रहते हों। बस चालक या कन्डक्टर कभी ये क्यों नहीं सोचते कि ऐसे स्थान पर बस रोकें जहां वॉशरुम वगैरह की व्यवस्था हो ताकि महिला यात्री आराम से सफर कर सकें?
हम एक दूसरे को कोऑपरेट नहीं करेंगे तो समाज आगे कैसे बढ़ेगा और कैसे होगी तरक्की? परेशान व्यक्ति की सहायता करना हमारा कर्तव्य है चाहे वो किसी लिंग, जाति या धर्म का हो।

Thursday, January 31, 2019

रेप के जिम्मेदार हम और हमारा समाज

माँ किसी रेपिस्ट को जन्म नहीं देती, माँ के लिए उसकी संतान उसका बच्चा होता है और वो हर तरीके से उसे अच्छा बनाना चाहती है।
यदि कोई व्यक्ति बलात्कारी, दरिंदा और पापी बनता है तो उसके जिम्मेदार हैं हम, हमारे द्वारा दी गयी लिबर्टी उसका मनोबल बढ़ाती है। हमारे यहां एक परंपरा है कि हम किसी मामले में तभी पड़ते हैं जब वो हमसे जुड़ा हो, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने वालों की पिटाई की जाती है और उन्हें सबक सिखाया जाता है बशर्ते महिला हमारी बहन,बेटी, दोस्त, पत्नी या माँ हो। हम इग्नोर कर देते हैं सामने हो रही छेड़छाड़ और गलत चीजों को अगर वो हमसे रिलेटेड ना हो क्योंकि यही संस्कार मिलते हैं हमारे यहाँ बेटों को।
सिर्फ बेटों को ही नहीं बल्कि बेटियों को भी हमारे यहाँ यही सिखाया समझाया जाता है कि राह चलते कोई कमेंट पास करे, सीटी मारे, देखकर अश्लील गाने ऊंची आवाज में प्ले करे तो   "" जस्ट इग्नोर""   कोशिश करो कि कहीं अकेले मत जाओ, सहेलियों के साथ ही घर आओ लेकिन फिर भी अगर ऐसी सिचुएशन कभी आ गयी कि कोई तुमसे छेड़छाड़ करे तो तुरंत घर आ कर बड़े भइया से बताना ताकि वो उसको सबक सिखाने के लिए जाएं!  हमें विरोध करने की शिक्षा नहीं दी जाती।
यही बेटियाँ शादी के बाद ससुराल में भी सहती हैं क्योंकि उनमें नहीं क्षमता होती है आवाज उठाने और विरोध करने की, उनके पास केवल एक ही चारा होता है कि मायके में अपना दुख दर्द कहकर रो लें और फिर से वही सहने के लिए तैयार हो जाएं।
कितना अच्छा होता अगर कमेंट्स पास करने पर ही उसे तुरंत पलटकर जवाब दे देती लड़की, टेम्पो में कोहनी मार रहे बगल वाले अंकल को भी झटके से कोहनी लगाती लड़की, सामने के आइने से देख रहे कैब ड्राइवर को घूरकर नजरें झुकाने को मजबूर करती लड़की, रास्ता चलते हुए छेड़छाड़ करने और हांथ पकड़ने वाले को ऐसा घूंसा चेहरे पर मारती लड़की कि नाक और मुंह से खून आने लग जाये।
काश!!
काश ऐसा होता तो आज देश में किसी का भी रेप कर देना उनके लिए कोई बच्चों का खेल नहीं होता। जुर्म सहना, जुर्म करने से बड़ा पाप है और कहीं न कहीं हम सब इस पाप के भागी हैं। अगर किसी लड़की का रेप होता है तो उसका दोषी सिर्फ वो रेपिस्ट ही नहीं बल्कि हम सब और हमारा पूरा समाज है। हमारी चुप्पी हमारी गलती है जो उसका मनोबल बढ़ाती है और उस गलती की सजा भुगतनी पड़ती है समाज की अन्य बेटियों को।
कोई अचानक से अन्यायी और दुष्ट नहीं बन जाता, हम उसे ऐसा करने की छूट देते हैं। 

Saturday, January 5, 2019

जनरल बोगी का सफर..


अरे नहीं! सोचना भी मत, अगर टिकट न हो पाये तो तत्काल कर लेना, वो भी न हो तो प्रीमियम में ले लेना लेकिन जनरल में मत आना बेटा...
ऐसा कहना होता है मेरे पिता का 
"लेकिन क्यूँ? ऐसा क्या होता है जनरल बोगी में?" का जवाब सिर्फ "उसमें दिक्कत होती है" कहकर दे दिया जाता था। 
और भी लोगों से बात करते हुए मैंने जाना कि लोगों के बीच यह धारणा बन चुकी है कि जनरल बोगी का सफर आरामदायक व सुरक्षित नहीं होता और महिलाओं के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। महिलाओं के साथ बत्तमीजी करना, उन्हें धक्के देना, बैड टच करना जनरल के यात्रियों के लिए आम बात होती है। लेकिन ऐसा क्यों होता है उसमें? क्या जनरल बोगी में यात्री दूसरे ग्रह से आते हैं? उसमें भी तो यही लोग होते हैं जो अक्सर हमारे बीच स्लीपर और एसी में यात्रा कर रहे होते हैं। इसपर लोगों का कहना था कि उसमें भीड़ होती है इसलिए ऐसा होता है। लेकिन भीड़ तो बस में भी क्या कम होती है? लेकिन फिर भी जनरल ट्रेन और बस के सफर में प्राथमिकता बस को ही मिलती है। महिलाओं के साथ धक्का मुक्की, जानबूझकर उपर गिरना, मौका पाते ही बैड टच और कमेंट पास होना.. बसों में भी खूब होता है लेकिन फिर भी महिलाएं बस यात्रा को इतना बुरा नहीं समझतीं जितना की ट्रेन की जनरल बोगी। फिर वो क्या चीज होती है जो जनरल बोगी को बाकी बोगियों और बस यात्रा की तुलना में खराब और घटिया साबित करती है! 
सुनी सुनायी बातों में क्या सही और क्या गलत? इसकी कोई गारंटी नहीं होती, मुझे तो तभी विश्वास होता जब खुद महसूस करती और अपनी आंखों से देख लेती सब कुछ।। 
और निकली मैं पहली बार ट्रेन की जनरल बोगी के सफर पर। ट्रेन ऐसी पकड़नी थी जो लम्बी दूरी का सफर तय करती हो इसलिए मैंने चुना "कोटा पटना एक्सप्रेस"। पहले से ही आठ घंटे लेट हो चुकी यह ट्रेन जब प्लेटफार्म पर आयी तो मैं भी सीट पाने के चक्कर में जल्दी से चढ़ गयी लेकिन नाकामयाब रही। अच्छी खासी भीड़ थी लेकिन फिर भी एक सीट पर मेरी हथेली के बराबर स्थान मिल ही गया। हालांकि आमतौर पर मैं किसी की दया का पात्र नहीं बनना चाहती किन्तु खड़े होने के लिए भी न के बराबर स्थान मिलना मेरे मन में घबराहट को जन्म दे रहा था इसलिए एक सज्जन की कृपा पाकर मैं बैठ सकी। पूरी बोगी में एक महिला थीं वो भी अपने पति के साथ, जो एक घंटे की यात्रा के बाद अपने मंजिल पर उतर गयीं। 
अनजान व्यक्तियों से भी सरलता से बात कर लेने की आदत अकेले होते हुए भी मुझे कभी बोर नहीं होने देती।खैर रात होने केे साथ ही सभी लोग अपने बैठने की व्यवस्था बनाने लगे, कुछ लोग नीचे ही चादर बिछाकर बैठ गये और कुछ एक दूसरे के ऊपर सिर टिकाकर सो रहे थे, वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो ऊपर की दो सीटों के बीच चादर बांधकर झूलेनुमा बना रखे थे और उसी में बैठे हुए थे। वाकई ये दृश्य मेरे लिए पहली बार था। 
अगर बात करें उन चीजों की जो जनरल बोगी को बाकी से अलग करतीं हैं तो सारे चार्जिंग प्वाइंट्स टूटे हुए या खराब थे, पानी का तो कहीं नामोनिशान न था, टॉयलेट्स की गन्दगी को बयां नहीं कर सकती, हर किसी की एक्टिविटी दूसरे लोगों को डिस्टर्ब कर रही थी जैसे किसी को वॉशरुम जाना हो तो नीचे बैठे हुए लोगों से रिक्वेस्ट करना और उनकी दो बातें सुनना पड़ता था। मुझे हुई दिक्कतों में मुख्य रूप से यह था कि किसी के सिगरेट पीने या तम्बाकू ठोंकने को मुश्किल से सहन कर पा रही थी। राहत ये थी कि अपने आसपास बैठे लोगों में से किसी ने शराब नहीं पी रखी थी। 
खैर लोगों से ऐसे ही बातचीत करते हुए और बहुत सी समस्याओं को देखते झेलते हुए मेरा छह घंटे का सफर ग्यारह घंटे में आखिरकार पूरा हो ही गया और अपने गंतव्य को पहुंच कर थोड़ी राहत मिली। 





Tuesday, November 20, 2018

व्रत और प्रेम

आज के दौर में हर व्यक्ति खुद को विकसित और बुद्धिमान समझता है, खुद को औरों से ज्यादा तार्कसंंगिक साबित करना चाहता है. हर व्यक्ति खुद को विज्ञान से जुड़ा मानता है और किसी भी कीमत पर ये मानने को तैयार नहीं होता कि वह अंधविश्वासी है. आज भी हमारे समाज में व्रतों का महिमामंडन जारी है, और हो भी क्यूं न, व्रत हमारे समाज और संस्कृति का हिस्सा हैं. व्रत हमारा धार्मिक मामला है और इस पर टिप्पड़ी करने का हक किसी को नहीं है. व्रत केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत फायदेमंद है. एक शोध के अनुसार व्रत रखने वाले लम्बी उम्र जीते हैं जिसकी निम्न वजहें हैं-- 
1. व्रत रखने के दौरान फैट बर्निंग प्रोसेस तेज हो जाता है. जिससे चर्बी तेजी से गलना शुरू हो जाती है.

2. फैट सेल्स लैप्ट‍िन नाम का हॉर्मोन स्त्रावित करती हैं. व्रत के दौरान कम कैलोरी मिलने से लैप्ट‍िन की सक्रियता पर असर पड़ता है और वजन कम होता है.

3. व्रत के दौरान कुछ आवश्यक पोषक तत्वों को लेना जरूरी है वरना व्रत करना आपके लिए तकलीफदेह हो सकता है. व्रत के बाद आप जब भी कुछ खाएं, कोशिश करें कि वो पौष्ट‍िक हो न कि फैट से भरा हुआ.वरना वजन घटने के बजाय बढ़ जाएगा.

4. व्रत करने से नई रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं के बनने में मदद होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैलिफोर्निया के विशेषज्ञों की मानें तो कैंसर के मरीजों के लिए व्रत रखना बहुत फायदेमंद होता है. खासतौर पर उन मरीजों के लिए जो कीमोथेरेपी ले रहे हैं.

5. जरूरी नहीं है कि जब कोई धार्मिक मौका हो तो ही आप व्रत करें. शरीर की अंदरुनी गंदगी को साफ करने और पाचन क्रिया को बेहतर बनाने के लिए आप कभी भी सुविधानुसार व्रत कर सकते हैं.

6. कई अध्ययनों में ये पाया गया है कि कुछ समय के लिए व्रत रखने से मेटाबॉलिक रेट में 3 से 14 फीसदी तक बढोत्तरी होती है. अगर वाकई ऐसा ही है तो इससे पाचन क्रिया और कैलोरी बर्न होने में कम वक्त लगेगा.

7. व्रत करने से दिमाग भी स्वस्थ रहता है. व्रत करने से डिप्रेशन और मस्त‍िष्क से जुड़ी कई समस्याओं में फायदा होता है.

8. व्रत करने के दौरान आपको इस बात का भी अंदाजा हो जाता है कि आपका खानपान कितना गलत है.

9. आज के समय में तनाव एक बहुत बड़ी मेडिकल प्रॉब्लम है. व्रत करने से तनाव में कमी आती है.                                                        (source:  aajtak.indiatoday.in)


व्रत रखना फायदेमंद तो है लेकिन कोइ भी शोध या डॉक्टर निर्जला व्रत रखने की सलाह नहीं देता.
खैर, क्या व्रत रखना जरुरी है? वो भी सिर्फ इसलिये कि हमें अपने पति और पुत्र से प्रेम है? क्या प्रेम को साबित करने की जरुरत है? अगर कोई स्त्री करवा चौथ, तीज का व्रत न रखे तो इसका ये मतलब हुआ कि वह अपने पति से प्रेम नहीं करती? पुत्र प्रेम को साबित करने के लिये गणेेेश चतुर्थी, छठ और ज्युत्पुत्रिका व्रत रखना जरुरी है? अगर भाई दूज का व्रत ना रखूं तो इसका मतलब कि मुझे अपने भाई से प्रेम नहीं??  यहाँ पर एक विज्ञापन याद आ रहा है कि "जो बीवी से करे प्यार वो प्रेस्टीज से कैसे करे इंकार"  कुछ वैसी ही स्थिति यहाँ पर भी है कि "जो पति से करे प्यार वो व्रत से कैसे करे इंकार".
प्रेम तो पति भी अपनी पत्नी से करता है, बेटा भी अपनी मां से करता है और भाई भी अपनी बहन से करता है लेकिन उनको साबित करने की जरुरत क्यूं नहीं होती?? 
व्रत हम भगवान मे अपनी आस्था की वजह से रखते हैं और व्रत रखने से हमें मानसिक संतुष्टि मिलती है लेकिन व्रत का लम्बी उम्र कनेक्शन मेरी तो समझ से परे है. अगर वाकई व्रत रखने से उम्र लम्बी होती तो सारे पुरुष अमर होते.  
सौभाग्यशाली और सुहागिन बने रहने के लिये प्रत्येक स्त्री को व्रत रखने जरुरी है? और जो विवाहिता इसे ना कर सके उसे तत्काल और बिना सोचे समझे 'दुष्ट' और 'अपने पति से प्रेम ना करने वाली स्त्री' की संज्ञा दे दी जाती है. 
जब बात एक आदर्श स्त्री की आती है तो आज भी समाज सीता, अनसुइया, सुकन्या, तारा, पद्मिनी की ही छवि देखता है. घर और दफ्तर के कामों मे संतुलन बनाना, परिवार, पति, बच्चों के साथ खुशी से रहना आदर्श होना नहीं है?  व्रत रखना एक तरफ से फायदेमंद है तो वहीं निर्जला व्रत रखने से पानी की कमी जैसे कई नुकसान भी शरीर को झेलने पड़ सकते हैं. ब्लडप्रेशर, शुगर, कैंसर जैसी बीमारियों से से पीड़ित व्यक्ति को व्रत रखने से परहेज की सलाह दी जाती है वहीं निर्जला व्रत पर पूरी तरह से मनाहीं होती है. व्रत रखना या ना रखना पूरी तरह से अपनी इच्छा पर निर्भर करता है, समाज किसी स्त्री को व्रत रखने के लिये विवश नहीं कर सकता है. परिवार के प्रति उसके प्रेम को व्रत से नहीं तौला जा सकता और न ही उसे अपने प्रेम को साबित करने की जरुरत है. @नलिनी

आत्मनिर्भर भारत

जब से मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कही है, मैं बहुत खुश हूं और लगता है कि जीवन में अब कोई समस्या ही नहीं रही। लेकिन एक दिन में मिली एक ...