Tuesday, February 19, 2019

सहयोग के बिना संभव नहीं तरक्की


लड़कियों/महिलाओं को हेल्प लेने की आदत होती है और वो चाहती हैं कि उन्हें सहायता व सुविधाएं इसलिए दी जाएं क्योंकि वे लड़की हैं। लड़की लड़का एक समान की दुहाई देने वाली इन लड़कियों की क्षमता कहां चली जाती है बस में खड़े होकर सफर करते समय। कोई पुरुष किसी लड़की को अपनी सीट क्यूँ दे? उसे भी तो बैठना है और उसने भी तो पैसे दिये हैं टिकट के।
 किसी पर्टिकुलर जेंडर के आधार पर हेल्प मांगना कभी भी ताकतवर होने की निशानी नहीं हो सकती। वहीं इस बात का एक दूसरा पहलू यह भी है कि किसी की सच्चाई को जाने बिना उसे जज करना भी कोई समझदारी नहीं है।
स्त्री और पुरुष में शारीरिक रूप से काफी भिन्नताएं होती हैं। प्रेग्नेंसी, पीरियड्स आदि कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे मानव जाति का अस्तित्व है।  चूँकि स्त्री जननी है इसलिए वह इन कष्टों को सहते हुए मनुष्य को धरती पर लाती है। इसके बदले में हमारा क्या धर्म है? हमें क्या करना चाहिए। वो सारे कष्टों को सहते हुए अपनी सहनशीलता का परिचय दे रहीं हैं तो क्या थोड़ी सी सहायता करना भी हमारा फर्ज नहीं? क्या हम ये नहीं कर सकते कि पत्नी के पीरियड्स के समय कुछ दिन हम खाना बना दें? उसे आराम मिलेगा और खुशी भी।
क्या हमारे यहां ऐसा माहौल नहीं हो सकता कि कोई लड़की ड्राइवर से खुलकर बोल सके कि थोड़ी देर बस रोक दीजिए मुझे पैड बदलना है? लम्बी दूरी के सफर में बसें केवल ढाबे पर या उस स्थान पर रुकती हैं जहां ज्यादा सवारी रहते हों। बस चालक या कन्डक्टर कभी ये क्यों नहीं सोचते कि ऐसे स्थान पर बस रोकें जहां वॉशरुम वगैरह की व्यवस्था हो ताकि महिला यात्री आराम से सफर कर सकें?
हम एक दूसरे को कोऑपरेट नहीं करेंगे तो समाज आगे कैसे बढ़ेगा और कैसे होगी तरक्की? परेशान व्यक्ति की सहायता करना हमारा कर्तव्य है चाहे वो किसी लिंग, जाति या धर्म का हो।

आत्मनिर्भर भारत

जब से मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कही है, मैं बहुत खुश हूं और लगता है कि जीवन में अब कोई समस्या ही नहीं रही। लेकिन एक दिन में मिली एक ...