Saturday, March 13, 2021

आत्मनिर्भर भारत

जब से मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत की बात कही है, मैं बहुत खुश हूं और लगता है कि जीवन में अब कोई समस्या ही नहीं रही। लेकिन एक दिन में मिली एक ऐसी लड़की से... 


एक लड़की जो की तैयारी कर रही है प्रतियोगी परीक्षाओं की। उससे मैंने कहा कि तुम अपना बिजनेस क्यों नहीं कर लेती। अपना काम रहेगा दूसरों का सहारा नहीं रहेगा बल्कि तुम खुद किसी का सहारा बन सकोगी और दूसरों को रोजगार दे सकोगी। तपाक से बोली "अरे वाह क्या बात बताई है तूने ये तो मुझे पता ही नहीं था। थैंक यू यार थैंक यू"। पहले तो मैं खुश हुई फिर अचानक से उसके बोलने के तरीके से मुझे लगा कि शायद वह मुझे ताना मार रही है। उसने आगे कहा कि आत्मनिर्भर भारत, सशक्तिकरण, सशक्त महिला फलाना ढिमाका की बातें करना बहुत आसान है। खुद एक लड़की की नजर से देखो सारी चीजें समझ में आ जाएंगी। मैं अपना खुद का बिजनेस कर लूं? ठीक है कर लूंगी,  दो चार साल में हूं उसको बड़ा कर लूं , ठीक है वह भी कर लूंगी,  बिजनेस अच्छा खासा चलने लगा, कमाई होने लगी, घर परिवार की परिस्थितियां अच्छी हो गईं,  कई सारे लोगों को रोजगार दे दिया मैंने और फिर... फिर क्या? चूंकि मैं अविवाहित हूं तो मुझे शादी भी करनी है, चूंकि मैं लड़की हूं तो मुझे दूसरे के घर जाना है, चूंकि मैं भारतीय महिला हूं इसलिए मुझे अपने ससुराल रहना है।  अब तू बता मैं क्या करूंगी? खून पसीना एक करके अपना बनाया हुआ बिजनेस बंद कर दूं? या शादी ना करूं? या ससुराल छोड़ दूं? या बेरोजगार रहूं? क्या करूं मैं? बता जवाब दे। 

मैंने कुछ बोलने की कोशिश की लेकिन मेरी बात बीच में काटते हुए वह बोली-  हां मुझे पता है तू क्या बोलने वाली है,  लेकिन दुनिया की हर लड़की केवल सिलाई कढ़ाई या ब्यूटी पार्लर नहीं करती। सबके शौक सबके हुनर एक जैसे नहीं होते। लड़की का मतलब ये ज़रूरी नहीं कि मैं डांस क्लास शुरू करूं या फिर ब्यूटी पार्लर खोलूं या सिलाई करूं या छोटे बच्चों को ट्यूशन दूं , अपनी कोचिंग खोलूं। 

उस लड़की का क्या जो इन सब से अलग करना चाहती है। बहुत सारे सरकारी विज्ञापन देखे होंगे तूने जिसमें लिखा होगा कि महिला सशक्त हो गई अपना व्यापार कर लिया, खुद का उद्यम कर लिया। तूने ऐसी कोई महिला देखी है जिसने खुद की बड़ी सी कंपनी खोली हो और उसका बिजनेस चलने के बाद उसने शादी की और उसकी फैमिली उसको सपोर्ट कर रही हो।  शायद नहीं, अगर देखी भी होगी तो इनका प्रतिशत कितना है यह तू भी जानती है। बचपन से घर वालों ने इतना पढ़ाया लिखाया है इसलिए नहीं कि मैं सिलाई कढ़ाई करूं ब्यूटी पार्लर खोलूं और छोले समोसे की दुकान खोल लूं। अगर यही करना होता तो उसमें पढ़ने की कोई जरूरत नहीं थी। मेरा यहां कहने का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि यह काम करने वाले लोग बुरे होते हैं या छोटे होते हैं। मेरा बस कहने का मतलब इतना है कि क्वालिफिकेशन के हिसाब से काम होने चाहिए और सबकी अपनी अपनी पसंद होती है सबकी प्राथमिकताएं होती हैं और मेरी प्राथमिकता ऐसी नहीं है। क्या मेरे लिए है कोई जवाब सरकार के पास।

तुझे समझ में आया कि मैं नौकरी की तैयारी क्यों कर रही हूं? क्यों नहीं मैं अपना खुद का उद्यम कर लेती, क्यों नहीं मैं स्वरोजगार कर लेती? क्योंकि यह भारत है अमेरिका नहीं, हमें अपनी फैमिली को लेकर चलना पड़ता है हमें बचपन से यही संस्कार दिया गया है कि हर काम में हमें परिवार के सुझाव, उनकी सलाह, उनके सपोर्ट की जरूरत होती है। चाहे लड़की हो या लड़का अपनी फैमिली को नहीं त्याग सकते। लड़कों के साथ अच्छी बात यह होती है कि उन्हें अपनी फैमिली चेंज नहीं करनी पड़ती लेकिन यह सुविधा लड़कियों को नहीं मिलती। और बिजनेस में होमटाउन ट्रांसफर की सुविधा नहीं होती। 

अब ये मत बोलना की घर पर ही एक कमरे में एक कुछ काम शुरू कर दे क्योंकि तू भी जानती है की गांव में अपना छोटा छोटा बिजनेस चलाने वाले कितना कमाते हैं और कितने ग्राहक आते हैं उनके यहां रोज। तो मुझे शहर जाकर कोई काम शुरू करना होगा। चूंकि बिजनेस होगा तो उसका विज्ञापन भी करना होगा और अपना बजट ज्यादा नहीं है तो ज्यादा कर्मचारी भी नहीं रख सकती इसलिए ज्यादातर काम मुझे खुद करने होंगे। घर से 35 किलोमीटर दूर शहर में अपना बिजनेस खोला है लेकिन रोज घर पर वापस भी आना है। बिजनेस भी संभालना है और उसको इस प्रतियोगी बाजार के लिए तैयार भी करना है। अब तू बता क्या सरकार मुझे इन सामाजिक बंधनों से मुक्त कर पाएगी कि मैं रात के 12:00 बजे भी काम खत्म करके घर आऊं तो मुझे कोई गलत तरीके से ना देेखे, कोई मेरे कैरेक्टर पर शक ना करे, कोई मेरी फैमिली को कुछ ना बोले? मुझे पता है कि इस पर बहुत सारे लोग ऐसा बोलेंगे कि "शहर में ही रह लो" या फिर "गांव से हो तो इतना बड़ा काम क्यों सोच रही हो"। आपकी बात बिल्कुल सही है या तो मैं अपना गांव छोड़ दूं, घर छोड़ दूं , परिवार छोड़ दूं , या फिर मैं इसलिए कुछ ना करूं तो कि मैं गांव की हूं।  हमारी सोसाइटी में हमें यही सिखाया जाता है पढ़ो पढ़ो और पढ़ो। सबसे ज्यादा नंबर लाओ, अच्छी सी नौकरी पाओ। पढ़ना मेरा शौक बन गया लेकिन मैं क्या करूं ऐसा कोई बिजनेस है जहां पढ़ाई से तरक्की मिले? हमें तो नौकरी के लिए तैयार किया गया है स्कूल में, कॉलेज में हर जगह। बिजनेस के तौर तरीके आपने कब पढ़ाये अपने एजुकेशन सिस्टम में। मेरे दिमाग में तो सक्सेस का मतलब जो बचपन से डाला गया वह यही है कि एक बड़ी सी कंपनी, जिसमें अच्छी सी पोस्ट वाली जॉब, बहुत सारेे पैसे, हर महीने सैलरी आ जाए, 9:00 से 5:00 की जॉब हो, शाम को मैं अपने घर होऊं, फैमिली के साथ रहूं, हर वीकेंड पर घूमने जाऊं। लेकिन आज आप कह रहे हो कि मैं अपना खुद का बिजनेस चला लूं? नहीं आता मुझे बिजनेस चलाना, मेरे घर खानदान में 10 पीढ़ियों से किसी ने बिजनेस नहीं किया है। और अब तो मैं इस लायक भी नहीं कि बिजनेस करने के लिए कोई कोर्स कर लूं। इसके लिए है कोई जवाब आपके पास? सिर्फ एक जवाब ही होगा की छोटी सी दुकान खोल लो और 10 साल उसी में घिसते रहो, किस्मत अच्छी हुई तो बिजनेस चल पड़ेगा क्योंकि बिजनेस की स्ट्रैटेजी और तौर-तरीके तो मुझे आते नहीं, तो किस्मत पर ही भरोसा करूं ना? आप तो अपनी स्वरोजगार योजना में केवल सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटी पार्लर, कंप्यूटर की दुकान जहां ऑनलाइन फॉर्म भरे जाते हैं (जहां कोई जाता नहीं है अब), मोटर साइकिल, मोबाइल और कंप्यूटर रिपेयरिंग आदि की ट्रेनिंग देते हो। ट्रेनिंग लेकर बच्चे दुकान तो खोल लेंगे लेकिन उसको मार्केट में कंपीट करने के लायक कैसे बनाएंगे यह बताया आपने? क्योंकि हमने तो समाज में कॉन्टैक्ट बनाए ही नहीं न, जो हमारे बिजनेस का प्रचार प्रसार कर दे लोगों से बातचीत करके। हम तो एक कमरे में बंद रह कर केवल तैयारी करते रहे कि 1 दिन ढेर सारी वैकेंसी आएगी और हमारी भी सरकारी नौकरी लग जाएगी। 


वह बोलती गई और बोलती गई लगातार बिना रुके, और हमेशा बकबक करने वाली मेरी जुबान चुप थी।क्योंकि नहीं था मेरे पास कोई जवाब उसकी बातों का।  आपके पास है? हो तो बताइएगा जरूर।

1 comment:

  1. यह ब्लाग नारी की पारिवारिक, समाजिक, आर्थिक स्थिति को समेटते हुए आत्मनिर्भर बनने की विचारों को कुरेदती है ,मगर इसका समाधान भी स्वंय नारी शक्ति के साथ परिवार को भी करना चाहिए. एक लडकी की आत्मीय सोच लाजमी है और आज इस परिवेश में ऐसी प्रश्नों का अनुत्तरित होना कही न कही हकीकत को बया कर रही है !बस

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