Tuesday, April 9, 2019

विजयगढ़ किला

देवकी नंदन खत्री का नाम तो आपने सुना होगा। लाहौर में पैदा हुए खत्री काशी आकर बस गये थे और वहां के राजा के बहुत करीब हो गए थे फलस्वरूप राजा से उन्होंने नौगढ़ के जंगलों का ठेका ले लिया था। और यहां से शुरू हुई उनके जीवन की असली कहानी।
देवकीनंदन खत्री का ज्यादा समय जंगल में ही बीतता था तो उन्होंने जंगल और खंडहरों से प्रेरणा लेकर एक उपन्यास ही लिख डाला और नाम रखा ""चन्द्रकांता""।
वर्ष 1888 में लिखा यह उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुआ और इस पर एक टीवी सीरियल भी बना। टीवी सीरियल काफी रोचक था और बहुत सारे लोग इसे पसंद करते थे।
लेकिन क्या उस किले को आपने देखा है, जहां की राजकुमारी थीं चन्द्रकांता? अगर नहीं, तो जाइए कभी यूपी के सोनभद्र और देख लीजिए यह तिलिस्मी किला। कहानी सबको पसन्द आयी लेकिन किले पर किसी का ध्यान नहीं गया, सरकारों का भी नहीं। यदि ऐसे ही चलता रहा तो कुछ दिनों बाद यह किला हमारे लिए सिर्फ इतिहास बनकर रह जाएगा।

कुछ बातें जो इस किले को खास बनाती हैं

विजयगढ़ किले से चुनारगढ़ और नौगढ़ जाने के लिए गुफा द्वारा सीधा रास्ता है लेकिन यह रास्ता सिर्फ तिलिस्म से ही खुलता है। इन्हीं गुफाओं में खजाने छुपे होने की भी आशंका जताई जाती है। यहां पर कुल छोटे बड़े सात तालाब हैं तथा चार तालाब ऐसे हैं जिनका पानी कभी नहीं सूखता। ज्यादातर तालाब अपना अस्तित्व खो चुके हैं। सावन के महीने में कांवरिए इन तालाबों से जल भरकर ले जाते हैं। किले के दो दरवाजे हैं जिनमें से पिछले दरवाजे का रास्ता सामने वाले दरवाजे की तुलना में कम है लेकिन उसकी बदतर स्थिति के कारण किसी को पिछले दरवाजे से जाने की अनुमति नहीं है। प्रशासन ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। किले के अंदर बने कमरे भी अब खंडहर हो गये हैं। बारिश में लोगों के रहने तक की जगह नहीं है, मिरानशाह की मजार और हनुमान मन्दिर के बने छप्पर में जाकर लोग बारिश से खुद को बचाते हैं।।

देखिए ये डिजिटल स्टोरी -


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